तिब्बत

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Context of तिब्बत

तिब्बत तिब्बत एक देश था। जिसकी सीमा भारतऔर चीनी जनवादी गणराज्य अफगानिस्तानवबर्मा से लगती है। दलाई लामा यहां के प्रसिद्ध धार्मिक नेता हैं।

यह 1950 में चीन की साम्राज्यवादी नीति का शिकार हो गया। अब यह चीन का राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र है, और इसकी भूमि मुख्य रूप से पठारी है। इसे पारंपरिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। चीन द्वारा तिब्बती लोगों पर काफी अत्याचार किए गए व अब भी किये जा रहें हैं।

More about तिब्बत

Population, Area & Driving side
  • Population 3002166
  • छेत्र 2500000
इतिहास
  • मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित १६००० फुट की ऊँचाई पर स्थित इस राज्य का ऐतिहासिक वृतांत लगभग ७वी शताब्दी से मिलता है। ८वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। १०१३ ई॰ में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। १०४२ ई॰ में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल १२०७ ई॰ में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत १७२० ई॰ में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर १७८८-१७९२ ई॰ के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणाम स्वरूप १९वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के मुताबिक तिब्बत को दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत को हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद माँगी चीन के मदद से उसने नेपाल से छुटकारा तो पा लिया लेकिन इसके बाद १९०६-१९०७ ई॰ में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार कर लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। १९१२ ई॰ में चीन से [[चिंग राजवंश |मान्छु शासन]] अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् १९१३-१९१४ में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी भागों में विभाजित कर दिया गया:

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    मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित १६००० फुट की ऊँचाई पर स्थित इस राज्य का ऐतिहासिक वृतांत लगभग ७वी शताब्दी से मिलता है। ८वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। १०१३ ई॰ में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। १०४२ ई॰ में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल १२०७ ई॰ में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत १७२० ई॰ में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर १७८८-१७९२ ई॰ के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणाम स्वरूप १९वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के मुताबिक तिब्बत को दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत को हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद माँगी चीन के मदद से उसने नेपाल से छुटकारा तो पा लिया लेकिन इसके बाद १९०६-१९०७ ई॰ में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार कर लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। १९१२ ई॰ में चीन से [[चिंग राजवंश |मान्छु शासन]] अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् १९१३-१९१४ में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी भागों में विभाजित कर दिया गया:

    (१) पूर्वी भाग जिसमें वर्तमान चीन के चिंगहई एवं सिचुआन प्रांत हैं। इसे 'अंतर्वर्ती तिब्बत' (Inner Tibet) कहा गया। (२) पश्चिमी भाग जो बौद्ध धर्मानुयायी शासक लामा के हाथ में रहा। इसे 'बाह्य तिब्बत' (Outer Tibet) कहा गया।

    सन् १९३३ ई॰ में १३वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी घेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित पालित १४वें दलाई लामा ने १९४० ई॰ में शासन भार सँभाला। १९५० ई॰ में जब ये सार्वभौम सत्ता में आए तो पंछेण लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की नौबत तक आ गई एवं चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। १९५१ की संधि के अनुसार यह साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय से भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो क्रमश: १९५६ एवं १९५९ ई॰ में जोरों से भड़क उठी। परतुं बलप्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई लामा नेपाल पहुँच सके। अभी वे भारत में बैठकर चीन से तिब्बत को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। अब सर्वतोभावेन चीन के अनुगत पंछेण लामा यहाँ के नाममात्र के प्रशासक हैं।

     
    ८ सितम्बर १९५० को तिब्बत का एक प्रतिनिधिमण्डल तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ
     
    कैलाश पर्वत
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