中華民國
चीनी गणराज्यContext of चीनी गणराज्य
चीनी गणराज्य या ताइवान (अंग्रेज़ी:Taiwan, चीनी:台灣) पूर्वी एशिया का एक देश है। यह ताइवान द्वीप तथा कुछ अन्य द्वीपों से मिलकर बना है। इसका प्रशासनिक मुख्यालय ताइवान द्वीप है। इसके पश्चिम में चीनी जनवादी गणराज्य (चीन), उत्तर-पूर्व में जापान, दक्षिण में फिलीपींस है। 1949 में चीन के गृहयुद्ध के बाद ताइवान चीन से अलग हो गया था लेकिन चीन अब भी इसे अपना ही एक असंतुष्ट राज्य कहता है और आज़ादी के ऐलान होने पर चीन ने हमले की धमकी दे रखी है।
ताइवान वह देश है जो विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या तथा सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होते हुए भी संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं है।
यूं तो नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि यह चीन का सरकारी नाम है पर वास्तव में ये चीन की लगभग सम्पूर्ण भूमि पर समाजवादियों के अधिपत्य हो जाने के बाद बचे शेष चीन का प्रशासनिक नाम है। यह चीन के वास्तविक भूभाग के बहुत कम भाग में फैला है और महज कुछ द्वीपों से मिलकर बना है। चीन के मुख्य भूभाग पर स्थपित प्रशासन का आधिकारिक नाम जनवादी गणराज्य चीन है और यह लगभग सम्पूर्ण चीन के अलावा तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्ता...आगे पढ़ें
चीनी गणराज्य या ताइवान (अंग्रेज़ी:Taiwan, चीनी:台灣) पूर्वी एशिया का एक देश है। यह ताइवान द्वीप तथा कुछ अन्य द्वीपों से मिलकर बना है। इसका प्रशासनिक मुख्यालय ताइवान द्वीप है। इसके पश्चिम में चीनी जनवादी गणराज्य (चीन), उत्तर-पूर्व में जापान, दक्षिण में फिलीपींस है। 1949 में चीन के गृहयुद्ध के बाद ताइवान चीन से अलग हो गया था लेकिन चीन अब भी इसे अपना ही एक असंतुष्ट राज्य कहता है और आज़ादी के ऐलान होने पर चीन ने हमले की धमकी दे रखी है।
ताइवान वह देश है जो विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या तथा सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होते हुए भी संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य नहीं है।
यूं तो नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि यह चीन का सरकारी नाम है पर वास्तव में ये चीन की लगभग सम्पूर्ण भूमि पर समाजवादियों के अधिपत्य हो जाने के बाद बचे शेष चीन का प्रशासनिक नाम है। यह चीन के वास्तविक भूभाग के बहुत कम भाग में फैला है और महज कुछ द्वीपों से मिलकर बना है। चीन के मुख्य भूभाग पर स्थपित प्रशासन का आधिकारिक नाम जनवादी गणराज्य चीन है और यह लगभग सम्पूर्ण चीन के अलावा तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान तथा आंतरिक मंगोलिया पर भी शासन करता है तथा ताईवान पर भी अपना दावा करता है।
More about चीनी गणराज्य
- Currency नवीन ताइवानी डॉलर
- Native name 中華民國
- Calling code +886
- Internet domain .tw
- Mains voltage 110V/60Hz
- Democracy index 8.94
- Population 23593794
- छेत्र 36193
- Driving side right
चीन के प्राचीन इतिहास में ताइवान का उल्लेख बहुत कम मिलता है। फिर भी प्राप्त प्रमाणों के अनुसार यह ज्ञात होता है कि तांग राजवंश (Tang Dynasty) (618-907) के समय में चीनी लोग मुख्य भूमि से निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। कुबलई खाँ के शासनकाल (1263-94) में निकट के पेस्काडोर्स (pescadores) द्वीपों पर नागरिक प्रशासन की पद्धति आरम्भ हो गई थी। ताइवान उस समय तक अवश्य मंगोलों से अछूता रहा।
जिस समय चीन में सत्ता मिंग वंश (1358-1644 ई.) के हाथ में थी, कुछ जापानी जलदस्युओं तथा निर्वासित और शरणार्थी चीनियों ने ताइवान के तटीय प्रदेशों पर, वहाँ के आदिवासियों को हटाकर बलात् अधिकार कर लिया। चीनी दक्षिणी पश्चिमी और जापानी उत्तरी इलाकों में बस गए।
1517 में ताइवान में पुर्तगाली पहुँचे, और उसका नाम 'इला फारमोसा' (Ilha Formosa) रक्खा। 1622 में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर डचों (हालैंडवासियों) ने पेस्काडोर्स (Pescadores) पर अधिकार कर लिया। दो वर्ष पश्चात् चीनियों ने डच लोगों से सन्धि की, जिसके अनुसार डचों ने उन द्वीपों से हटकर अपना व्यापार केन्द्र ताइवान बनाया और ताइवान के दक्षिण पश्चिम भाग में किला ज़ीलांडिया (Fort Zeelandia) और किला प्राविडेंशिया (Fort Providentia) दो स्थान निर्मित किए। धीरे धीरे राजनीतिक दाँव पेंचों से उन्होंने सम्पूर्ण द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया।
17वीं शताब्दी में चीन में मिंग वंश का पतन हुआ, और मांचू लोगों ने चिंग वंश (1644-1912 ई.) की स्थापना की। सत्ताच्युत मिंग वंशीय चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) ने 1661-62 में डचों को हटाकर ताइवान में अपना राज्य स्थापित किया। 1682 में मांचुओं ने चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) के उत्तराधिकारियों से ताइवान भी छीन लया। सन् 1883 से 1886 तक ताइवान फ्यूकियन (Fukien) प्रदेश के प्रशासन में था। 1886 में उसे एक प्रदेश के रूप में मान्यता मिल गई। प्रशासन की ओर भी चीनी सरकार अधिक ध्यान देने लगी।
1895 में चीन-जापान युद्ध के बाद ताइवान पर जापानियों का झण्डा गड़ गया, किन्तु द्वीपवासियों ने अपने को जापानियों द्वारा शासित नहीं माना और ताइवान गणराज्य के लिए संघर्ष करते रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान ने वहाँ अपने प्रसार के लिए उद्योगीकरण की योजनाएँ चलानी आरम्भ कीं। इनको युद्ध की विभीषिका ने बहुत कुछ समाप्त कर दिया।
काहिरा (1946) और पोट्सडम (1945) की घोषणाओं के अनुसार सितम्बर 1945 में ताइवान पर चीन का अधिकार फिर से मान लिया गया। लेकिन चीनी अधिकारियों के दुर्व्यवहारों से द्वीपवासियों में व्यापक क्षोभ उत्पन्न हुआ। विद्रोहों का दमन बड़ी नृशंसता से किया गया। जनलाभ के लिए कुछ प्रशासनिक सुधार अवश्य लागू हुए।
इधर चीन में साम्यवादी आन्दोलन सफल हो रहा था। अन्ततोगत्वा च्यांग काई शेक (तत्कालीन राष्ट्रपति) को अपनी नेशनलिस्ट सेनाओं के साथ भागकर ताइवान जाना पड़ा। इस प्रकार 8 दिसम्बर, 1949 को चीन की नेशनलिस्ट सरकार का स्थानान्तरण हुआ।
...आगे पढ़ेंचीन के प्राचीन इतिहास में ताइवान का उल्लेख बहुत कम मिलता है। फिर भी प्राप्त प्रमाणों के अनुसार यह ज्ञात होता है कि तांग राजवंश (Tang Dynasty) (618-907) के समय में चीनी लोग मुख्य भूमि से निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। कुबलई खाँ के शासनकाल (1263-94) में निकट के पेस्काडोर्स (pescadores) द्वीपों पर नागरिक प्रशासन की पद्धति आरम्भ हो गई थी। ताइवान उस समय तक अवश्य मंगोलों से अछूता रहा।
जिस समय चीन में सत्ता मिंग वंश (1358-1644 ई.) के हाथ में थी, कुछ जापानी जलदस्युओं तथा निर्वासित और शरणार्थी चीनियों ने ताइवान के तटीय प्रदेशों पर, वहाँ के आदिवासियों को हटाकर बलात् अधिकार कर लिया। चीनी दक्षिणी पश्चिमी और जापानी उत्तरी इलाकों में बस गए।
1517 में ताइवान में पुर्तगाली पहुँचे, और उसका नाम 'इला फारमोसा' (Ilha Formosa) रक्खा। 1622 में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर डचों (हालैंडवासियों) ने पेस्काडोर्स (Pescadores) पर अधिकार कर लिया। दो वर्ष पश्चात् चीनियों ने डच लोगों से सन्धि की, जिसके अनुसार डचों ने उन द्वीपों से हटकर अपना व्यापार केन्द्र ताइवान बनाया और ताइवान के दक्षिण पश्चिम भाग में किला ज़ीलांडिया (Fort Zeelandia) और किला प्राविडेंशिया (Fort Providentia) दो स्थान निर्मित किए। धीरे धीरे राजनीतिक दाँव पेंचों से उन्होंने सम्पूर्ण द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया।
17वीं शताब्दी में चीन में मिंग वंश का पतन हुआ, और मांचू लोगों ने चिंग वंश (1644-1912 ई.) की स्थापना की। सत्ताच्युत मिंग वंशीय चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) ने 1661-62 में डचों को हटाकर ताइवान में अपना राज्य स्थापित किया। 1682 में मांचुओं ने चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) के उत्तराधिकारियों से ताइवान भी छीन लया। सन् 1883 से 1886 तक ताइवान फ्यूकियन (Fukien) प्रदेश के प्रशासन में था। 1886 में उसे एक प्रदेश के रूप में मान्यता मिल गई। प्रशासन की ओर भी चीनी सरकार अधिक ध्यान देने लगी।
1895 में चीन-जापान युद्ध के बाद ताइवान पर जापानियों का झण्डा गड़ गया, किन्तु द्वीपवासियों ने अपने को जापानियों द्वारा शासित नहीं माना और ताइवान गणराज्य के लिए संघर्ष करते रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान ने वहाँ अपने प्रसार के लिए उद्योगीकरण की योजनाएँ चलानी आरम्भ कीं। इनको युद्ध की विभीषिका ने बहुत कुछ समाप्त कर दिया।
काहिरा (1946) और पोट्सडम (1945) की घोषणाओं के अनुसार सितम्बर 1945 में ताइवान पर चीन का अधिकार फिर से मान लिया गया। लेकिन चीनी अधिकारियों के दुर्व्यवहारों से द्वीपवासियों में व्यापक क्षोभ उत्पन्न हुआ। विद्रोहों का दमन बड़ी नृशंसता से किया गया। जनलाभ के लिए कुछ प्रशासनिक सुधार अवश्य लागू हुए।
इधर चीन में साम्यवादी आन्दोलन सफल हो रहा था। अन्ततोगत्वा च्यांग काई शेक (तत्कालीन राष्ट्रपति) को अपनी नेशनलिस्ट सेनाओं के साथ भागकर ताइवान जाना पड़ा। इस प्रकार 8 दिसम्बर, 1949 को चीन की नेशनलिस्ट सरकार का स्थानान्तरण हुआ।
1951 की सैनफ्रांसिस्को सन्धि के अन्तर्गत जापान ने ताइवान से अपने सारे स्वत्वों की समाप्ति की घोषणा कर दी। दूसरे ही वर्ष ताइपी (Taipei) में चीन-जापान-सन्धि-वार्ता हुई। किन्तु किसी सन्धि में ताइवान पर चीन के नियंत्रण का स्पष्ट संकेत नहीं किया गया।