Medina Azahara

( मदीना अज़हरा )

मदीना अज़हरा (अरबी में: مدينة الزهراء मदीनत अज़-ज़हरा: शाब्दिक अर्थ "फूल का शहर") महल-शहर के खंडहर का नाम है जिसे अरब मुस्लिम मध्ययुगीन कोरदोबा के उमय्यद ख़लीफ़ा अब्द-अर-रहमान तृतीय अल नासिर (912 -961) ने कोरदोबा के पश्चिमी सरहद पर स्पेन में बनाया था। यह प्रशासन और सरकार के दिल के जैसी अहमियत इसकी दीवारों के भीतर थी क्योंकि यह एक अरब मुस्लिम मध्ययुगीन शहर और अल अन्दलूस या मुस्लिम स्पेन की वास्तविक राजधानी थी। 936-940 की शुरुआत में बने इस शहर में औपचारिक स्वागत कक्ष, मस्जिदें, प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय, बाग़, एक टकसाल, कार्यशालाएँ, बैरक, घर और स्नानाग्रह शामिल थे। जल जलसेतु के माध्यम से आपूर्ति की गई थी।

इसके निर्माण का मुख्य कारण राजनीतिक-वैचारिक था: खलीफा की गरिमा एक नए शहर की स्थापना अपनी शक्ति के प्रतीक के रूप में आवश्यकता थी। यह अन्य पूर्व के ख़लीफ़ाओं नक़ल थी। इन सबसे ऊपर, यह अपने महान प्रतिद्वंद्वियों उत्तरी अफ्रीका के फ़ातिमियों पर अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन था।आगे पढ़ें

मदीना अज़हरा (अरबी में: مدينة الزهراء मदीनत अज़-ज़हरा: शाब्दिक अर्थ "फूल का शहर") महल-शहर के खंडहर का नाम है जिसे अरब मुस्लिम मध्ययुगीन कोरदोबा के उमय्यद ख़लीफ़ा अब्द-अर-रहमान तृतीय अल नासिर (912 -961) ने कोरदोबा के पश्चिमी सरहद पर स्पेन में बनाया था। यह प्रशासन और सरकार के दिल के जैसी अहमियत इसकी दीवारों के भीतर थी क्योंकि यह एक अरब मुस्लिम मध्ययुगीन शहर और अल अन्दलूस या मुस्लिम स्पेन की वास्तविक राजधानी थी। 936-940 की शुरुआत में बने इस शहर में औपचारिक स्वागत कक्ष, मस्जिदें, प्रशासनिक और सरकारी कार्यालय, बाग़, एक टकसाल, कार्यशालाएँ, बैरक, घर और स्नानाग्रह शामिल थे। जल जलसेतु के माध्यम से आपूर्ति की गई थी।

इसके निर्माण का मुख्य कारण राजनीतिक-वैचारिक था: खलीफा की गरिमा एक नए शहर की स्थापना अपनी शक्ति के प्रतीक के रूप में आवश्यकता थी। यह अन्य पूर्व के ख़लीफ़ाओं नक़ल थी। इन सबसे ऊपर, यह अपने महान प्रतिद्वंद्वियों उत्तरी अफ्रीका के फ़ातिमियों पर अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन था।[उद्धरण चाहिए] कहा जाता है कि ख़लीफ़ा की पसन्दीदा अज़हरा को एक श्रद्धांजलि के रूप में बनाया गया था।

इस शाही महल को ख़लीफ़ा अब्द-अर-रहमान तृतीय के बेटे अल हकम द्वितीय (961-976) के शासनकाल के दौरान बढ़ाया गया था। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद जल्द यह महल ही ख़लीफ़ा का मुख्य निवास नहीं रह गया था। 1010 में यह एक गृह युद्ध में तबाह कर दिया गया था। उसके बाद यह छोड़ दिया गया था। इस महल से जुडे कई तत्वों को कहीं और फिर से इस्तेमाल किया गया था। इसके खंडहर को 1910 के बाद से शुरू खुदाई में निकालने की कोशिश की गई थी। 112 हेक्टेयर में से केवल 10 प्रतिशत को खोदा गया और पहले की हालत में पहुँचाया गया है। लेकिन इस क्षेत्र जुड़े हैं स्नान परिसर, दो कुलीन घर, और एक सेवा क्वार्टर के साथ जो कि महल के सुरक्षा दल के लिए था। इसके अलावा यहाँ एक बडी प्रशासनिक इमारत, दरबार की जगह, स्वागत के खुली जगह, बाग़ों की जगह और इस जगह से थोड़ी ही दूर पर एक जामा मस्जिद है।

इस जगह के किनारे पर एक नए संग्रहालय भी बना मगर इसका बड़ा हिस्सा ज़मीन के नीचे है जाकि इस पूरी ज़मीन की बनावट और खंडहर देखने में रुकावट न हो जो कि पहले से आज के दौर कुछ मकान बनने से पहले ही से हो रहा है।

उमय्यद ख़लीफ़ा अब्द-अर-रहमान तृतीय अल नासिर का बनाया इस शहर 80 वर्षों तक विकसित होता रहा था जिसका आग़ाज़ 936 और 940 के बीच शुरू हुआ था। 928 में ख़ुद के ख़लीफ़ा के तौर पर एलान करने के बाद उसने अपनी प्रजा को और दुनिया को अपनी शक्ति दिखाने का फ़ैसला किया और इसके लिए उसने कोरदोबा से पाँच किलोमीटर दूर एक महल-शहर बनाने का फ़ैसला किया था। अब तक ज्ञात पश्चिमी युरोप का यह सबसे बड़ा शहर था जिसे शुरू से बनाया गया था। उत्तरी और पूर्वी युरोप के यात्री इसे महलों की चकाचौन्द और बेपनाह दौलत का गढ़ बताते थे। 1010 में यह एक गृह युद्ध में तबाह कर दिया गया था और इसी के साथ यहाँ पर से ख़लीफ़ा का दौर ख़त्म हो गया था। [1] इन घटनाओं से इस शहर को अगले हज़ार साल के लिए दुनिया के नक़्शे से हटा दिया गया था।

एक लोकप्रिय कथा है कि एक महिला जिसका नाम अज़-ज़हरा या अज़हरा था ख़लीफ़ा के हरम में शामिल उसकी सबसे पसन्दीदा महिला थी और उसी के नाम पर यह शहर-महल बना था। यह भी कहा जाता है उस महिला की एक प्रतिमा प्रवेश द्वार पर लगा दी गई थी। सच तो शायद प्यार से कहीं ज़्यादा राजनीति से अधिक प्रेरित है। अब्द-अर-रहमान तृतीय ने जब आईबीरियाई प्रायद्वीप में अपनी राजनीतिक शक्ति को मज़बूत कर चुका था और उत्तरी अफ्रीका के नियंत्रण के लिए फ़ातिमी राजवंश के साथ संघर्ष में प्रवेश कर गया था, तथी उसने इस महल शहर के बनाने का फ़ैसला किया था। ज़हारा 'उज्ज्वल, चमक या खिलने' का अरबी में अर्थ होता है: नाम शक्ति और औक़ात दिखाता है, न कि रोमानी/ प्रेम की आकांक्षा वाले भाव। अज़-ज़हरा पैगंबर मुहम्मद की बेटी फ़ातिमा अज़-ज़हरा के लिए सबसे आम ख़िताब है। इसी नाम से उत्तरी अफ्रीका के फातिमी राजवंश कई इमारतों को क़स्बों को बनाया था। अपने आप में एक महिला विद्वान होने के नाते इसी ख़िताब से प्रेरित अल-अज़हर (शानदार) दुनिया में सबसे पुराना कामकाज कर रहे विश्वविद्यालय को दिया गया था जिसे फ़ातिमियों द्वारा 968 में क़ाहिरा में निर्मित किया गया था। उमय्यदों के ज़रिए धार्मिक / इस्लामी शास्त्र के माध्यम से उत्तरी अफ्रीका में महत्वाकांक्षा साफ़ दिखाई पड़्ती है।

 Arabesque panel

929 में अब्द-अर-रहमान तृतीय ने ख़ुद को पूरी तरह से स्वतंत्र घोषित किया, सच्चा ख़लीफ़ा बताया (विश्वासियों के राजकुमार) और उमय्यद राजवंश के वंशज बताया था। यह एक अलग क़दम था क्योंकि लगभग पूरी तरह से 9 वीं शताब्दी में अब्बासियों द्वारा यह अलग-थलग हो गया था। अब्द-अर-रहमान तृतीय ने दुनिया को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक, आर्थिक और वैचारिक उपायों की एक श्रृंखला ले आया था। एक नई राजधानी, उसकी गरिमा के अनुसार, उन उपायों में से एक था। उन्होंने 936 में शहर का निर्माण करने का फैसला किया और निर्माण में चालीस साल लग गए। जगह पर बनी मस्जिद को 941 में पवित्रा किया गया था और 947 में सरकार कोरदोबा से स्थानांतरित किया गया था। [2]

मदीना अज़हरा के खंडहर से आज की तारिख़ में जो दिखाई देता है वह अपनी हद का केवल 10% है। 112 हेक्टेयर-शहरी इलाक़ा सिर्फ़ सप्ताहांत भ्रमण के जगह नहीं थी बल्कि अल-अन्दलुस की राजधानी थी जिसे 8 वीं सदी की शुरुआत से 11 वीं के बीच तक मुसलमानों द्वारा नियंत्रित क्षेत्र आईबिरियन प्रायद्वीप को अपने क़ब्ज़े में लिए हुए थे। उच्चतम बिंदु पर खलीफा के महल के साथ सिएरा मुरैना के आधार पर ढाल में चरणों में बनाया शानदार सफ़ेद शहर अपनी प्रजा और विदेशी राजदूतों के द्वारा दूर-दूर तक देखा जा सकता था। अब्द-अर-रहमान तृतीय ने 947-48 में अपने पूरे दरबार को यहाँ ले आया था।[3]

गुज़रते ज़माने के साथ-साथ पूरा शहर दफ़न हो गया था। 1911 तक इस जगह को पता लगाया नहीं जा सका था। खुदाई और बहाली स्पेन की सरकार द्वारा वित्तीय सहायता पर निर्भर करती है और अब भी जारी है। जो हिस्सा नहीं खोदा भाग है, वह आवास के अवैध निर्माण से ख़तरे में है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक़ "कोरदोबा में स्थानीय सरकार निष्कृय रही है। निर्माण कंपनियाँ शहर की साइट पर घरों को बना रहे हैं। विकास के नाम पर साइट पर ही विस्तार किया जा रहा है। साइट को बचाने यहाँ की सरकार 10 साल पहले पारित कानून को लागू करने में नाकाम रही है। यहाँ पर 90 प्रतिशत इलाक़े पर खुदाई नहीं हुई है।[4]

कलात्मक दृष्टि से मदीना अज़हरा ने एक विशिष्ट अंदालूसी इस्लामी वास्तुकला तैयार करने में एक बड़ी भूमिका निभाई है। इसकी कई विशेषताएँ जैसे कि छोटे गिरजाघर-जैसा शाही स्वागत कक्ष (इस्लामी दुनिया के पूर्वी भाग में गुंबददार आकार के साथ के विपरीत) यहाँ पहली बार कल्पना की गई हैं। इस तरह के एक केंद्रीय आंगन या बग़ीचे के चारों ओर कमरे के जुड़े की व्यवस्था के रूप में अन्य सुविधाएँ इस्लामी वास्तुकला का भरपूर प्रतिध्वनित कर रहे हैं। मदीना अज़हरा की मस्जिद कोरदोबा की बड़ी मस्जिद जैसी होने के कारण उसे "छोटी बहन" बुलाया गया है।[5]

सत्ता में आने से पहले अल-मंसूर इब्न अबी आमिर (पश्चिमी दुनिया जिसे Almanzor के नाम से जानती है) कोरदोबा के उपनगरीय इलाक़े में रहते थे। हाजिब (खलीफा के द्वारपाल) बनने पर वह खुद के लिए एक महल-शहर का निर्माण करने का फैसला किया जो अब्द-अर-रहमान मदीना तृतीय के मदीना अज़हरा से बढ़कर न सही मगर उस जैसा सुन्दर ज़रूर हो। इस महल को मदीना अज़हरा के सामने बनाया जाना था। अल-ज़हीरा की बुनियाद 978-979 में गुआदलक्विविर (Guadalquivir) नदी के पास के रूप रखी गई थी। मंसूर ने अपने महल को मदीना अज़-ज़हीरा का नाम दिया था।

इस महल के निर्माण के पीछे मंसूर के उद्देश्य उसके खुद के नाम को नाम अल अन्दुलस के बादशाह अब्द-अर-रहमान तृतीय के महानतम नाम के साथ इतिहास के पन्नों में अपने ख़ुद का नाम लिखवाना था। यह चारों ओर व्यापक उद्यान के साथ एक सुंदर महल था। यह अल-मंसूर के सुरक्षाकर्मियों और उच्च अधिकारियों के लिए निवास और हथयार भंडार के साथ लैस था।

1002 में अल-मंसूर की मौत पर उनके सबसे बड़े पुत्र अब्द अल मलिक अल-मुज़फ़्फ़र गद्दी का उत्तराधिकारी घोषित हुआ था। अब्द अल मलिक की मौत के बाद अब्द अल रहमान अस-संजुल या साँचेलो (Sanchelo) या छोटा सँचू (उसकी माँ अबदा सँचू की एक बेटी थी जो कासिले का काउँट था) जो अल-मंसूर का एक और बेटा था अपने भाई के जैसा उसूलों पर चलने लगा था। दिसम्बर 1009 में साँचेलो अलफोंसो पाँचवें के ख़िलाफ अपने अभियान में व्यस्त था तब लोग उसके ख़िलाफ बग़ावत पर उतर आए थे। चूँकि साँचेलो कहीं नज़र में नही आ रहा था, लोगों ने ग़ुस्से को दिखाने के लिए मंसूर के महल को बेरोकटोक और बेधड़क मुसलसिल चार दिनों के लिए लूटा। जब लूटने और महल को तहस-नहस करना ख़त्म हुआ, तो उन्होंने महल को आग लगा दी। कुछ ही देर में अज़-ज़हीरा राख के ढेर में बदल गया।

O'Callaghan, Joseph F., A History of Medieval Spain, Cornell University Press, 1975, Cornell Paperback 1983, p. 132 Barrucand, Marianne & Bednorz, Achim, Moorish Architecture in Andalusia, Taschen, 2002, p. 61 सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; F. Ruggles, 1991 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। McLean, Renwick (2005-08-16). "Growth in Spain Threatens a Jewel of Medieval Islam". The New York Times. मूल से 31 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-05-12. Barrucand, Marianne; Achim Bednorz (2002). Moorish Architecture in Andalusia. Taschen. पृ॰ 64.
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