बीकानेर
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बीकानेर' [[राजस्थान] एक बड़ा शहर है बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश था। यांहा स्थानीय जाट राजाओं का शासन था बिका नामक राजपूत सरदार ने स्थानीय जाट राजा के साथ मिलकर बसाया। इस नगर का नामकरण उन्हीं के नाम पर बीका+नेर – नेहरा जाट नाम पर किया । बीकानेर राज्य महाभारत काल में जांगल देश था<ref>"संग्रहीत प्रति". मूल से 27 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अगस्त 2007.</ref>
बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांश २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। ...आगे पढ़ें
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बीकानेर' [[राजस्थान] एक बड़ा शहर है बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश था। यांहा स्थानीय जाट राजाओं का शासन था बिका नामक राजपूत सरदार ने स्थानीय जाट राजा के साथ मिलकर बसाया। इस नगर का नामकरण उन्हीं के नाम पर बीका+नेर – नेहरा जाट नाम पर किया । बीकानेर राज्य महाभारत काल में जांगल देश था<ref>"संग्रहीत प्रति". मूल से 27 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अगस्त 2007.</ref>
बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि ७३ डिग्री पूर्वी अक्षांश २८.०१ उत्तरी देशंतार पर स्थित है। समुद्र तल से ऊँचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है
बीकानेर एक अलमस्त शहर है, अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफिक्र के साथ अपना जीवन यापन करते है। बीकानेर नगर की स्थापना के विषय मे दो कहानियाँ लोक में प्रचलित है। एक तो यह कि, नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने राव जोधा से कहा कि आपने भले ही राव सातल जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित सारुँडे का पट्टा दे दीजिये।[1] वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा। जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया। बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नाथा जी और नन्दा जी ये पाँच सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला, बेला पडिहार, लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत, विक्रम सिंह राजपुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने राव बीका जी का साथ दिया। इन सरदारों के साथ राव बीका जी ने बीकानेर की स्थापना की।
बीकानेर की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये हैं कि एक दिन राव जोधा दरबार में बैठे थे बीकाजी दरबार में देर से आये तथा प्रणाम कर अपने चाचा कांधल से कान में धीरे धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँग्य में कहा “मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे हैं"। इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की कृपा हो तो यही होगा। और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की। इस संबंध में एक लोक दोहा भी प्रचलित है-
पन्द्रह सौ पैंतालवे, सुद बैसाख सुमेर
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर
बीकानेर के राजाराव बीकाजी की मृत्यु के पश्चात राव नरा ने राज्य संभाला किन्तु उनकी एक वर्ष से कम में ही मृत्यु हो गयी। उसके बाद राव लूणकरण ने गद्दी संभाली।
बीकानेर के राठौड़ राजाओं के नाम
राय सिंह (1573-1612) कर्ण सिंह (1631-1669) अनूप सिंह (1669-1698) सरूपसिंह (1698-1700) सुजान सिंह (1700-1736) जोरावर सिंह (1736-1746) गजसिंह (1746-1787) राजसिंह (1787) प्रताप सिंह (1787) सुरत सिंह (1787-1828) रतन सिंह (1828-1851) सरदार सिंह (1851-1872) डूंगरसिंह (1872-1887) गंगासिंह (1887-1943) सार्दुल सिंह (1943-1950) करणीसिंह (1950-1988) नरेंद्रसिंह (1988-2022)↑ "बीकानेर राज्य में 'दीवान' के पद के प्रभावशाली बनने की यात्रा". Dainik Bhaskar. 2017-04-15. अभिगमन तिथि 2020-08-22.
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